#अध्ययन_करें
पढ़ना और अध्ययन करना दो अलग अलग प्रक्रियायें हैं।जब आप कोई ग्रंथ पढ़तें है तो आप बस उसकी शब्दों या बहुत तो शाब्दिक अर्थों तक ही सीमित रह जाते हैं और पढ़ने की प्रकिया भी जल्द पूरी हो जाति है।
किंतु जब आप किसी ग्रंथ का अध्ययन करते हैं तो आप उसके शब्दों से जुड़े भावों और उसके वास्तविक ज्ञान को समझते और विचार करते है।
पढ़ना जहाँ सिर्फ़ आपको ज्ञान देता है अध्ययन आपके स्वयं के विचारों को जन्म देता है।
पढ़ना बिलकुल वैसा ही है जैसे किसी सरोवर के जल पर स्वयम् चल कर उसके जल की शीतलता, उसकी लंबाई- चौड़ायी का जान लेना। किंतु अध्ययन करना बिलकुल वैसा जैसे सरोवर से जुड़े तमाम चीज़ों का बोध होना।
पढ़ना आपको सतही ज्ञान देता है जबकि अध्ययन आपको आंतरिक ज्ञान देने के साथ साथ आपके भीतर नए विचारो की उत्पत्ति करता है। आपको किसी विषय पर चिंतन मनन करने योग्य बनता है।
विचार करें! पढ़ें नही अध्ययन करें।
– अजय
#पूर्वनिर्धारित
जन्म और मृत्यु के सिवा जीवन में कुछ भी पूर्वनिर्धारित नही है और अगर कुछ है भी तो उसे अपने कर्मों से बदला जा सकता है।
पर जीवन में अनेक बार ऐसी परिस्थिति आती है जब व्यक्ति चाह कर भी अपने दुर्भाग्य को टाल नही पाता है। अतः यह मानने को भी बाध्य होना होगा कि जीवन के कुछ अंश पूर्व जन्म के कर्मों के कारण पूर्वनिर्धारित होते हैं।
आप सभी ने काली दास की कहानी अवश्य पढ़ी होगी :
विद्योत्तमा के द्वारा धिक्कारे जाने पर कालिदास इतने दुःखी हुए कि उन्होंने निश्चय किया कि मैं तब तक अपनी पत्नी के पास नहीं जाऊँगा जब तक मैं विद्वान नहीं बन जाऊँगा। इसी उद्देश्य को लेकर वो माँ काली के मन्दिर में कई दिन तक भूखे प्यासे रहकर माँ की उपासना करते रहे और माँ काली के वरदान से विद्वान बने।
ऐसा कहा जाता है की पूर्वजन्मों के कर्मों के प्रभाव से काली दास को विद्या की प्राप्ति नही हो सकती थी। परंतु वो विद्वान बने यह सत्य है ।
उन्होंने माँ काली की तपस्या की या विद्या अर्जन हेतु तपस्या की मैं यह तो नही कह सकता परंतु मैं यह अवश्य कह सकता हूँ की उन्होंने कर्म किया।
परिणामस्वरूप आज काली दास कृतियाँ हमारे सामने हैं।
अर्थात्, जन्म और मृत्यु के सिवा जीवन में कुछ भी पूर्वनिर्धारित नही है और अगर कुछ है भी तो उसे अपने कर्मों से बदला जा सकता है।
– अजय
#दृष्टिकोण
किसी भी व्यक्ति, वस्तु या स्थान को देखने का दृष्टिकोण सभी जीवों में सर्वथा भिन्न होगा ।
जीवों का ये दृष्टिकोण उनके पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है।
जब आप किसी पक्षी को पिंजरे से मुक्त करने हेतु भी हाथ बढ़ाते है तो वो भयभीत हो जाते हैं क्यूँकि उनका दृष्टिकोण उनके पूर्व अनुभवों के कारण आपकी नेक भावनाओं को समझ पाने में सक्षम नही है।अर्थात् आपकी छवि उनके दृष्टिकोण से अच्छी नही है।
तो क्या वास्तव में आपकी छवि वैसी ही है ?
आज के परिपेक्ष्य में एक कटु सत्य यह भी है की किसी के प्रति किसी प्रकार का दृष्टिकोण आज मनुस्य किसी से मिलकर अथवा उससे बात कर के नही बनाता बल्कि किसी के बारे में विभिन्न प्रकार के स्रोतों से जो प्रचारित प्रसारित किया जाता है उसी के आधार पर लोग अपना दृष्टिकोण भी निर्धारित कर लेते हें।
जब प्रचार प्रसार व्यापार बन जाए तो व्यक्ति, वस्तु या स्थान के वास्तविक गुणों को कभी स्पष्ट रूप से नही दिखाया जाएगा , फलस्वरूप आपका दृष्टिकोण भ्रमित होने के आसार अधिक हैं ।
स्वयं के बुद्धी का प्रयोग करे तत्पश्चात निर्णय करें!!!
-अजय
#सृजन
सृजन किसी भी चीज का कभी सरल नही होता । एक सुंदर घड़े के निर्माण हेतु कुंभार को कभी हल्की तो कभी कठोर थाप लगानी पड़ती है ।
उसी प्रकार जीवन में भी कभी हल्के तो कभी कठोर निर्णय लेने होते हैं।
कठोर निर्णय लेना भी सरल नही होता । घड़े के समान जीवन के बिखरने का भय भला एक सृजनकर्ता से अधिक किसे होगा !
परंतु निर्णय लेना होता है ।
किसी चीज का सृजन कर के देखो स्वयं जान लोगे !
-अजय